मल में कैलप्रोटेक्टिन की मात्रा को सूजन का एक विश्वसनीय संकेतक माना जाता है और कई अध्ययनों से पता चलता है कि आईबीडी के रोगियों में मल में कैलप्रोटेक्टिन की सांद्रता काफी बढ़ जाती है, जबकि आईबीएस से पीड़ित रोगियों में कैलप्रोटेक्टिन का स्तर नहीं बढ़ता है। इस बढ़े हुए स्तर का रोग गतिविधि के एंडोस्कोपिक और हिस्टोलॉजिकल दोनों मूल्यांकनों के साथ अच्छा संबंध पाया गया है।
एनएचएस सेंटर फॉर एविडेंस-बेस्ड परचेजिंग ने कैलप्रोटेक्टिन परीक्षण और आईबीएस व आईबीडी में अंतर करने में इसके उपयोग पर कई समीक्षाएं की हैं। इन रिपोर्टों का निष्कर्ष है कि कैलप्रोटेक्टिन परीक्षणों के उपयोग से रोगी प्रबंधन में सुधार होता है और लागत में उल्लेखनीय बचत होती है।
फेकल कैलप्रोटेक्टिन का उपयोग आईबीएस और आईबीडी के बीच अंतर करने में मदद के लिए किया जाता है। इसका उपयोग उपचार की प्रभावकारिता का आकलन करने और आईबीडी रोगियों में रोग के बढ़ने के जोखिम का अनुमान लगाने के लिए भी किया जाता है।
बच्चों में कैलप्रोटेक्टिन का स्तर अक्सर वयस्कों की तुलना में थोड़ा अधिक होता है।
इसलिए शीघ्र निदान के लिए सीएएल का पता लगाना आवश्यक है।
पोस्ट करने का समय: 29 मार्च 2022